नारी शक्ति वंदन अधिनियम के तहत आयोजित कार्यक्रम का सांसद जगदंबिका पाल ने रात्रि में लिया जायजा, चैयरमैन प्रतिनिधि रवि अग्रवाल, भाजपा नेता सुधांशु बोरा, सांसद प्रतिनिधि सूर्य प्रकाश पाण्डेय समेत अन्य लोग रहे मौजूद

नारी शक्ति वंदन अधिनियम के तहत आयोजित कार्यक्रम का सांसद जगदंबिका पाल ने रात्रि में लिया जायजा, चैयरमैन प्रतिनिधि रवि अग्रवाल, भाजपा नेता सुधांशु बोरा, सांसद प्रतिनिधि सूर्य प्रकाश पाण्डेय समेत अन्य लोग रहे मौजूद

श्रवण कुमार पटवा
शोहरतगढ़, सिद्धार्थनगर

नारी शक्ति वंदन अधिनियम को लेकर कल यानी बुद्धवार को शोहरतगढ़ के राजस्थान अतिथि भवन में होने वाले नारी शक्ति सम्मान कार्यक्रम का सांसद जगदंबिका पाल ने मंगलवार की रात्रि में जायजा लिया, जिसमें महिलाओं के लिए सत्ता में सहभागिता और महत्व को लेकर विस्तार से चर्चा की जाएगी। इस दौरान कार्यक्रम को लेकर चर्चा किया गया।


इस दौरान  प्रमुख रूप से चैयरमैन प्रतिनिधि रवि अग्रवाल, भाजपा नेता सुधांशु बोरा, सांसद प्रतिनिधि सूर्य प्रकाश  पाण्डेय, सभासद अनूप कसौधन, राजकुमार मोदनवाल, बबलू गौड़, रामजी यादव, घनश्याम गुप्ता, राजू बाबा, अभिलाष मिश्रा आदि मौजूद रहे।

सोसल मीडिया लेख के मुताबिक नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023: महिलाओं के लिए सत्ता में सहभागिता का आधार बनेगा महिला आरक्षण बिल- भारत को आजादी मिले 75 साल से ज्यादा बीत चुके हैं। आजादी की जंग में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। गोली मारी भी और खाई भी। अंग्रेजी हुकूमत के कोड़े खाने से लेकर साइनाइड पीने तक का सफर भी तय किया। महिलाओं ने आजादी की लड़ाई में सूझ-बूझ से लेकर कूटनीति और निडर गुप्तचर बन बराबर का प्रतिनिधित्व दिया।
भारत की आजादी के साथ ही महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया गया। यहां तक तो हम अमेरिका को पीछे छोड़ समानता के पायदान पर छलांग लगाने को तैयार रहें लेकिन समानता की प्रतिस्पर्धा में महिलाएं कब पीछे छूट गई, कब वे बराबरी के निचले पायदान पर सिमटकर रह गई पता ही न चला। सिर्फ वोट देने के अधिकार से पीठ नहीं थपथपाई जा सकती।
महिलाएं दुनिया की आधी आबादी हैं। दुनियाभर की संसद में महिलाओं की भागीदारी 24 प्रतिशत है लेकीन विडम्बना है कि, भारत में उनकी अपने ज्यादातर अधिकारों की जंग आज भी जारी है। आधी आबादी को आधे का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार है जिसके लिए उसकी लंबी लड़ाई अभी बाकी है। हालांकि भारत सरकार ने 33% आरक्षण पर बिल लाकर उस लड़ाई को सहज बनाने की पहल की है जो सराहनीय कदम है। वर्तमान में लोकसभा में 543 सीटों में 78 महिलाएं हैं जो लगभग 15% से कम हैं। वहीं राज्यसभा में 14% महिला सदस्य हैं जो बेहद कम संख्याबल को दर्शाता है।
महिला आरक्षण बिल से जागी उम्मीद की किरण- महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पास होने से उम्मीद की किरण जग उठी है कि जल्द ही यह कानून अमल पर आ जाएगा और महिला सशक्तिकरण की राह मज़बूत करने में मील का पत्थर साबित होगा। 
भारत का गौरवशाली इतिहास इस बात की तस्दीक करता है कि, भारत दुनिया के मानचित्र में उस दौरान पूर्ण विकसित नगरीय सभ्यता में शुमार था जब अन्य सभ्यताएं विकास के पायदान पर जद्दोजहद कर रही थी।
सिंधु सभ्यता की सड़के, उद्योग, नगर आज भी दुनिया के वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय है। तब हमारी सभ्यता मातृसत्तात्मक थी और हमारी संस्कृति दुनिया में श्रेष्ठतम। महिला आरक्षण बिल एक लंबे संघर्ष के दौर से गुजरते हुए लोकसभा पर पहुंचा है।
यदि यह कानून में तब्दील हो गया तो यह सम्पूर्ण नारी शक्ति की जीत होगी। महिला आरक्षण विधेयक 1996 के बाद कई बार बहस का मुद्दा बना 2010 में राज्य सभा से पास होने के बाद भी लोकसभा में पेश नहीं हो सका। जिस वजह से यह बिल अधर में लटका रहा। 
सरोजिनी नायडू के द्वारा आजादी से 17 साल पहले ही उठाए गए इस कदम ने आने वाले दिनों में महिलाओं के आरक्षण संबंधी बहस को जन्म दिया।
पहले सरोजिनी नायडू ने उठाई थी आवाज- कहते हैं सरोजिनी नायडू ने सन् 1931 में सबसे पहले महिला अधिकारों से संबंधित मुद्दों पर ब्रिटिश पीएम को पत्र लिखकर महिलाओं के राजनीतिक अधिकार को लेकर बात की थी। उनके मुताबिक महिलाओं को मनोनीत करके किसी पद पर बैठाना एक किस्म का अपमान है। वह चाहती थीं कि, महिलाएं मनोनीत न हों, बल्कि चुनी जाएं। सरोजिनी नायडू के द्वारा आजादी से 17 साल पहले ही उठाए गए इस कदम ने आने वाले दिनों में महिलाओं के आरक्षण संबंधी बहस को जन्म दिया।
वर्तमान में लोकसभा में 543 सीटों में 78 महिलाएं हैं जो लगभग 15% से कम हैं। वहीं राज्यसभा में 14% महिला सदस्य हैं जो बेहद कम संख्याबल को दर्शाता है। राज्य विधान सभाओं में यह संख्या 10% से भी कम है। देश की पहली लोकसभा 1952 में यह प्रतिशत 5% से भी कम रही तब केवल 24 महिला सांसद शामिल थी।
महिलाओं से जुड़े सवालों को तब तक हल करना संभव नहीं है जब तक महिलाएं उन सवालों को खुद हल करने में शामिल न होंगी। देश की पंचायतों से बेहतर उदाहरण भला क्या हो सकता है, जिसमें महिला सशक्तिकरण के बेहतरीन उदाहरण देखें जा सकते हैं। आंकड़ों की मानें तो वैश्विक राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 24% सांसदों का है। महिला आरक्षण विधेयक महिलाओं से जुड़े सवालों को हल करने में एक सशक्त साधन के रूप में देखा समझा जाना चाहिए। जिसे जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिए ताकि महिला सशक्तिकरण की राह में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो सके।
महिलाओं की शिक्षा पर भी ध्यान देने की है जरूरत- जब हमारी संसद में महिलाओं की संख्या ज्यादा होगी तो महिला मुद्दों पर मजबूती से बहस हो सकेगी। पंचायती स्तर पर महिलाओं में हुए कमाल के परिवर्तन बताते हैं की जब राष्ट्रीय स्तर पर महिलाएं बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगी तो उनसे जुड़े सवालों को न केवल हल करना आसान होगा बल्कि अपराधों में भी कमी आएगी। महिलाओं का समाज में पोषण स्तर बढ़ेगा, समाज के नीति निर्माण में महिलाओं की भागीदारी होना आवश्यक है। यद्धपि यह महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए एक मात्र उपाय नहीं है बल्कि इसके अलावा भी सरकार को और मजबूत कोशिशें शुरू करनी होगी।
समाज में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए महिलाओं की आर्थिक भागीदारी बढ़ाने की भी ज़रूरत है। उनके बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान देने की जरुरत है। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए जमीनी स्तर पर काम करने की आवश्यकता है ताकि महिला आरक्षण विधेयक को पूरी तरह सफल बनाया जा सके।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह सोसल मीडिया से लिया गया  है। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए पर्दाफ़ाश न्यूज़ उत्तरदायी नहीं है।